यह बेकाबू बहता वक्त का दरिया मुझे अपने अंदर समा लेना चाहता हैं।
मैं इससे लड़कर तैरना नहीं चाहता माँ, अपने वश में करना चाहता हूँ।
पर तुझसे एक फरियाद हैं माँ,
भला इसका मुकाबला अकेले कैसे करूँगा मैं?
आखिर मुझे हिम्मत तुझी से आती हैं।।

जब तू मेरे पास होती हैं , निंदिया खिलखिलाकर मेरे पास आती हैं,
पर तेरी कमी में माँ , मुझे यह बुरे सपने दे जाती हैं।
तुझसे एक फरियाद हैं माँ,
तेरे बिना कैसे सो पाऊँ मैं?
जब मीठी नींद ही नहीं आती हैं।।

तेरी प्रंशसा, तेरी डाँट, तेरी हर बात के बिना ज़िन्दगी जीने में कोई मज़ा थोड़ी हैं?
इस अकेलेपन ने माँ , खुशियों के लिए जगह ही नही छोड़ी हैं।
तुझसे एक फरियाद हैं माँ,
तू मेरे सामने क्यों नही आती हैं?
आखिर मेरी खुशियां तुझमे ही समाती हैं।।

मेरी मुस्कराहट को रोककर यह घडी की सुई, ‘खुदगर्ज’, चलती ही जाती हैं।
आज शीशे में भी देखु तो माँ, उदासी ही नज़र आती हैं।
तुझसे एक फरियाद हैं माँ,
तू फ़ोन पे ही क्यों मुझसे मिलती हैं?
तेरी आवाज़ दिल तक तोह पहुचती हैं मगर,
यह आसूं नही पोछ पाती हैं।।

तुझे गले से लगाकर आज मैं खुलकर रोना चाहता हूँ।
फिर सभी गमो को भुलाकर तेरी गोद में सोना चाहता हूँ।
तुझसे कोई फरियाद नहीं माँ,
तू बस जल्दी मेरे पास आजा,
तेरी याद बहुत आती हैं।।